Heinrich | sînes | gelückes | wæren | vrô | | seines | Glücks | wären | froh |
1384 | von | schulden | muosen | si | dô | | mit | Recht | konnten | sie | nach allem |
| von | den | gnâden | vreude | hân | | über | die | Gnade | froh | sein |
| die | got | an | im | hete | getân | | die | Gott | an | ihm | hatte | gezeigt |
1386a | Diz | wurden | lantmære | | dies | wurde | weit verbeitet |
| daz | genesen | wære | | dass | geheilt | wäre |
| der | guote | Heinrich | | der | gute | Heinrich |
1386d | des | vreuten | die | liute | sich | | darüber | freuten | die | Leute | sich |
| ez | en- | -benæme | eteswenne | der | nît | | wenn es | nicht | hinderte | gelegentlich | der | Neid |
| der | sît | Adâmes | zît | | der | seit | Adams | Zeit |
1386g | in | der | werlde | nie | gelac | | in | der | Welt | nie | aufhörte |
| noch | geliget | unz | an | den | suontac | | noch | aufhörten wird | bis | an | das | Jüngste Gericht |
| Sîne | vriunt | die | besten | | seine | Freunde | die | besten |
1388 | die | sîne | kunft | westen | | die | von seiner | Ankunft | wussten |
| die | riten | unde | giengen | | die | ritten | und | gingen |
| dâ | si | in | emphiengen | | dorthin, wo | sie | ihn | empfangen konnten |
1391 | engegen | im | wol | drîe | tage | | entgegen | ihm | gut | drei | Tage |
| si | en- | -geloupten | niemens | sage | | sie | _ | wollten glauben | niemandes | Bericht |
| niuwan | ir | selber | ougen | | sondern nur | ihren | eigenen | Augen |
1394 | si | kurn | diu | gotes | tougen | | sie | erkannten | _ | Gottes | verborgenes Wirken |
| an | sînem | schœnen | lîbe | | an | seiner | schönen | Gestalt |
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