Heinrich | dô | si | hâten | gesehen | | als | sie | hatten | gesehen |
1409 | daz | si | gesunt | wâren | | dass | sie | gesund | waren |
| si | en- | -westen | wie | gebâren | | sie | nicht | wussten | wie | (sie) sich benehmen sollten |
| dô | si | dar | solden | gâhen | | als | sie | dorthin | sollten | eilen |
1410b | dâ | si | si | muosen | emphâhen | | wo | sie | sie | sollten | empfangen |
| ir | gruoz | wart | spæhe | undersniten | | ihre | Begrüßung | wurde | schön | vermischt |
| mit | vil | seltsænen | siten | | mit | sehr | merkwürdigem | Verhalten |
1413 | ir | herzeliebe | wart | alsô | grôz | | ihre | Herzensreude | wurde | so | groß |
| daz | in | daz | lachen | begôz | | dass | ihnen | das | Lachen | überströmte |
| der | regen | von | den | ougen | | _ | Regen | aus | den | Augen |
1416 | der | rede | ist | unlougen | | die | Sache | ist | wahr |
| si | kusten | ir | tohter | munt | | sie | küssten | ihrer | Tochter | Mund |
| etewaz | mê | dan | drîstunt | | etwas | mehr | als | dreimal |
1419 | do | emphiengen | in | die | Swâbe | | da | empfiengen | ihn | die | Schwaben |
| mit | lobelîcher | gâbe | | mit | preiswürdigen | Geschenken |
| daz | was | ir | willeclîcher | gruoz | | das | war | ihre | freundliche | Begrüßung |
1422 | got | weiz | wol | den | Swâben | muoz | | Gott | weiß | wohl | den | Schwaben | muss |
| ieglich | biderbe | man | jehen | | jeder | tüchtige | Mann | anerkennen |
| der | si | dâ | heime | hât | gesehen | | der | sie | dort | zu Hause | hat | gesehen |
1425 | daz | bezzers | willen | nie- | -ne | wart | | dass | größere | Freundlichkeit | nie | _ | (es) gab |
| dan | als | in | an | der | heimvart | | als | (solche) wie | ihn | bei | seiner | Heimkehr |
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